जीवन मे चुनाव का बड़ा महत्व होता है। चुनाव ऐसे समय आता है जब हमारा मन तन जागृत रहता है। हमारे अंदर उत्साह का एक वेग रहता है जो हमारे कार्य उर्जा द्वारा सम्पादित किया जाना होता है। हमारा समर्थ हमें आगे चलने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे ही समय चुनाव आता है।
दर असल चुनाव हमारे अस्थिर नजरीया के कारण पैदा होता है। अस्थिर नजरिया का कारण उपयुक्त जानकारी का नही होना होता है। यदि समस्त जानकारी उपलब्ध हो जाय तो एक नजरिया बन ही जाती है। एक नजरिया बनने के बाद कार्य को पुर्ण होने के लिए साधन की उपलब्धता का होना होता है जिसके बाद कार्य संपादन होता है। उपलब्ध संसाधन के समुचित व्यवस्था होने के बाद हमारे कार्य कौशल का समय आता है जिससे कार्य की प्रगति अच्छी होती है। यदि हम यहां भी पुर्ण नियोजन के पार्थि है तो हमारा कल्याण संभव है बरना हमारा भटकाव नियती के अधिन है।
चुनते समय हमारे मन की बृति अस्थिर हो जाती है इसका कारण हमारे मन का उच्चश्रंख होना होता है। जिसका संबंध हमारे कल्पना से होता है। कल्पना भी स्थिर मन के एक बेग हो जो हमारे चित को भटका देता है। यहां पर हमें अपने ध्यान को फिर से वस्तविकता कि ओर ले जाकर जानकारी लेनी होती है जो हमारे भाव को बांधती है। यह बंधित भाव ही हमारे कार्य उर्जा मे संलयन लाना है। जिसके बाद उत्साह चरम पर होता है। हमारा मन दृढ़ता के साथ भर जाता है। इसके बाद चुनाव की समस्या की समाप्ति हो जाती है। सामने पड़ी हुई बस्तु स्वयं जगमगाने लगती है। हमारा मन प्रफुल्लित हो जाता है।
यदि कोई हमें भटकाना भी चाहे तो हमें खुद को सही सावित करने के लिए हमारे पास प्रयाप्त वयवस्था रहता है। यही व्यवस्था हमारे खुशी को नीचे नही गिरने देता है। यही खुशी दुसरो को भी जगाती है। हमारा समायोजन होता है। हमारे चुनाव के नजरीया का प्रकाश फैलने लगता है। यदि यह योग आपके साधना का भाग बन जाता है ओर यह आपके स्वाभाव की कला तो आपको समाज मे रैशन कर देगा।
अपका चेहरा प्रश्नचित मुद्रा पाकर आपको रोमांचित करता रहेगा। रोमांचित मन शरीर को सवलता प्रदान करता है। कहा जाता है कि यह वो उर्जा है जो निर्बल को भी सक्तिमय कर देता है। वो कुछ पल के लिए अपने अँदर की समस्त उर्जा को समेट कर असंभव को भी संभव कर जाता है। अब उसे लगने लगा है कि उसके अंदर भगवान को बास हो गया है।
एक डोर बन्दी थी सत्य की राह बनता चला गया। सोचे थे चुनाव अच्छा करुँगा। दिल मे गुलसन सा छा गया। गुलसन की माया रुठे को हांसाया। कह गये वो अरे बावली थी जो इस सोये को निंद से जगाया। जब निंद खुल ही गई है तो चुनाव करने का ख्याल आया। फिर तो सफर पर आगे निकलता ही चला गाया। धन्य है भगवन तेरी माया एक पल मे आकर मेरे सोये भाग्य जगाया।
अच्छा चुनाव वही माना जाता है जिससे एक बार यदि कर लिया तो बार बार पिछे मुड़कर न देखो अब आगे की सोचो क्योकि चुनाव के समय की स्थिती अभी नही हो सकती है। क्योकि सबकुछ परिपर्थनशील है। हर पल एक नया छण होता है यदि तुम्हे इसका भान नही है तो तुम अज्ञानी हो। तुम्हे जरुरत है अपनी साधना बढ़ाने की जिससे की तुम्हारा चुनाव शसक्त हो सके।
मानविय बिकार मे काम, क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा आदि का स्थान आता है लिकन चुनाव तो फिर भी हमे ही करना होता है। यदि एक बार चुनाव कर लिया तो आगे आनी वाली बाधा से भी लड़ना होता है। यदि आपका नजरिया दृढ़ है तो अपका कल्याण सतत होता रहेगा। आपके मन एवं ह्रदय का वास यदि प्राकृत मे है तो निश्चत ही आपका कल्याण होगा। इसलिए प्रभु का चुनाव करने का समय आवे तो उनकी रचीत इस माया को देखो। तुम्हे सब समझ आ जायेगा। तुम्हारा चुनाव निसंदेश अच्छा होगा।
हे पथिक यह समस्त श्रष्टि की रचना ही एक माया है लेकिन एक ही सुत्र मे समाया है वह है साधना इससे हम स्वयं को पाकृत से समायोजित करते है। स्वयं से नियंत्रण होने वाले भाव को अपने अधिन कर प्रखर दिखने वाले अनियंत्रित भाव को सम्मन करते है। यह संभव भी होता है क्योकि चुनाव का मार्ग एकाकी तथा दृढ़ एवं योज पुर्ण है। यही कल्याण का मार्ग है जीवन मे सुख शांति का आधार युगो –युगो से रहता आया और रहता रहेगा। तुम्हारा समस्त कल्याण हो इसकी कामना हम करते है।
लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु