मुड़ – मुड़ कर देखने की क्रिया मुलतः भाव प्रधान कार्य को निरुपित करता है। जब व्यक्ति अपने भाव के अनुरुप व्यक्ति को अपने करीव पाता है तो वह उसको जानने की कोशिश करता है। इसी को लेकर वह बार – बार देखता है। जब वह पुरी तरह से आश्वस्त हो जाता है तब ही अगले कदम के बारे मे सोचता है। कभी पति ही अपनी पत्नी की परीक्षा लेने को उत्सुक हो जाता है। प्यार मे यदि शक का भाव दिखने लगे तो इसका निराकरण होना जरुरी है नही तो यह भाव उसे अंदर ही अंदर खोखला कर देगा।
इस जोगीरा मे पति के द्वारा किये जा रहे जांच परीक्षा पर व्यंग पुर्ण प्रहार किया गया है जिससे की आनेवाले समय मे लोग आश्स्त हो सके कि यह प्रकृया गलत है। पत्नि पति के व्यहार मे संफल होकर एक दुष्टांत पेश करती है तथा इस कार्य पर एक व्यंग भी है। समाज मे होने वाले आशंका को दुर करने के लिेए यह जोगीरा बड़ा ही रोचक रचना है।
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लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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