भगवान बुद्ध की नगरी

भगवान बुद्ध की नगरी
Bhagawan Budh
भगवान बुद्द
भगवान बुद्द का मंदिर
भगवान बुद्द का मंदिर

बोधि मंदिर परिसर

   बिहार के बोध गाया मे स्थित भगवान बुद्द के मंदिर परिसर को अवलोकन करने का आज(24 जुलाई 2022) सुनहरा मौका मिला। भगवान बद्ध के शांति संदेश के भाव को यहां करीब से महसूस किया जा सकता है। प्रवेश द्वार पर ही भगवान के तप की मुद्रा के लीन मुर्ती नजर आता है। मनमोहक हरियाली दर्शनाभिलाषी को भगवान की संदेश सुनाने लगते है। सुरक्षा मानडंड मे लगे सरकारी लोग कराई से नियम को पालन करने के  लिए बाध्य कर रहे थे।

भगवान बुद्द की गाथा जो मस्तिष्क मे पहले से था उसमे भगवान को ज्ञान प्राप्त होना सबसे अहम था। स्वयं को ज्ञान के लिए तैयार करना, साधना करना, ततपश्चात ज्ञान को पा लेना, तथा स्वयं को ज्ञानार्जित सिद्ध करना जैसे अनुपम घटना मेरे मस्तिष्क को लगातार उद्वेलित कर रहा था।

    सुरक्षा द्वार से प्रवेश लेकर जितना दुर चलना परता है उसमे एक तरफ की अनोखी बर्णछटा बर्वस ध्याण को खिंच लेता है। गोला आकृति जिसमे पत्ती नुमा चिन्ह बना है लगतार दिखता है जो जीवन को सतत चलने वाला परिवर्तनशीलता को दर्शाता हुआ मुझे एहसास करा रहा था। सुरक्षा का दुसरा घेरा पार करने के बाद मुख्य मंदिर का पुरा बिंब सामने आ जाता है।

   चरणपादुका से स्वयं को अलग करने के बाद अब एक एक पग भगवान के शरणागत के लिए आगे बढ़ने लगे। मंदिर का कौतुहल दृष्य जैसे जैसे नजदिक आ रहा था मन रोमांचित भाव से भाव बिभार हुआ जा रहा था। गर्मि के कारण तप्त घरा के पत्थर जो दर्द महसुस करा रहा था उसका भान होते ही ध्यान पुऩः मंदिर की ओर चला जा रहा था। जब ध्यान की गहराई बढने लगी तो ऐ एहसास भी जाता रहा।

   अब हम मंदिर के मुख्य द्वार से आगे बढ़ने लगे थे। हम यह सोच रहे थे की ऐ मंदिर आम मंदिर से भिन्न कैसे है। मै इसकी खाशियत को समझने के प्रयास के तरह अपनी निगाह की स्थिरता के साथ अवलोकन मे लगा था। साथ ही पंक्ति की बनाये रखने का संदेश भी पिछे दिया जा रहा था।

   मंदिर के प्रतिमा के आगे कुछ भक्त जन अत्यंत ही भाव पुर्ण मुद्रा मे लीन देखकर मेरे मन मे श्रधा के पुष्प खिलने लगे थे। मेरे अवलोकन मे उनकी भक्ति की उच्यता का स्थान मिल रहा था। मे दर्शन करते हुए भगवान के सामने नतमस्तक होते हुए जीवन मे शांती सुख और ज्ञान की प्रकाश को परिलक्षित करने की कामना के साथ आगे निकल गया।

मेरा मन कुछ देर रुककर अवलोकन का था संयोगवस मुझे अवसर मिल गया और मे भगवान के आसपास के सारी बस्तु पर अपनी पैनी निगाह डाल दी। मैं ये समझने की कोशिश कर रहा था कि यहां जो बस्तु बिधमान है उसकी अपनी क्या खाशियत है। हर बस्तु के होने का कुछ भाव होता ही है जिसे मे समझने की कोशिश मे था। ऐसा करते हुए मै मंदिर से बाहर निकल कर मंदिर को गैर से देखने लगा।

भगवान की गाथा की बिभिन्न मुद्रा संबाद को कहता चित्र मंदिर के द्व्यता को बढ़ा रहा था। हर मुद्रा के भाव को पुर्णतः अवलोकित कर समझना आसान भी नही था। मेरी निगाहें मंदिर के शिखर तक की नाप लिया और उसका निचोर भी निकल गया। साधना को समझने की शक्ति जिसमे है उसे ही सही से इसको समझ सकता है मेरी सोच मे इसी भाव को दर्शाने का पुरा प्रयास किया गया था।

मुख्य मंदिर की भव्यता अनुपम है। दूर से ही कैतुहल को जगा जाता है। मन में बुद्ध के विचार धारा की भांति भ्रमर करने लगते है। मंदिर में प्रवेश के समय जो आत्मीय भाव जागता है वह पूरे शरीर को उद्वेलित कर जाता है। भगवान की दिव्य प्रतिमा आत्म निरीक्षण के भाव को सहज ही संवेगित कर देती है। ऐसा लगा जीवन को सशक्त करने का एक उपाय मिल गया।

    पिछे की तरफ बढ़ता हुआ जब भगवान की ज्ञानस्तली को देखा तो एक टक देखता ही रह गया। स्वयं को सिद्द करने वाले भगवान बुद्द की ज्योतिमय स्थल को काफी देर तक समझने के बाद वहां के अन्य भावपुर्ण प्रदर्शन को समझने की भरपुर कोशिश किया।

कुछ भक्त ऐसे भी मिले जो ऐ समझाने का प्रयास किया की यहां के मुल पुजा का भाव क्या है। कैसे स्वयं को उर्जावान किया जाय। वस्तुतः उनके इस प्रयास ने मुझे भी एकात्म बना दिया। लेकिन मै तो अवलोकन मे था सो आगे निकल गया कुछ नया देखने के लिए।

बोधि वृक्ष आज भी पुराने समय की दास्तान को कहता हुआ खड़ा है। भगवान का सिंहासन पेड़ के जड़ में है। इसके चारो ओर भक्ति का अनुपम समा बांधता हुआ आभामय वातावरण मन को मोहित कर लेता है। मंदिर में बने हुए भगवान की मुद्रा भक्त को मोहित कर लेता है।

मुख्य मंदिर के सामने एक मंदिर है जहां से भगवान अपने ज्ञान प्राप्ति के बाद एकटक एक सप्ताह तक देखते रहे। मंदिर के बगल में भगवान के चतुसमास तक ठहराने के लिए एक घर बना है। इसके बगल में कई तरह के स्मृति संकेत रखा हुआ है।

दीवाल पर की गई नक्काशी प्रेरक प्रसंग को कहता हुआ समय परिवर्तन की कहानी कहता है। भगवान के विचार को भी उद्धृत किया गया है। जिसपर कुछ पल विचार करने को दिल कहता है क्योंकि हरियाली मन को खींचता है।

परिसर में एक बड़ा सा तालाब है। तालाब के बीच में भगवान की मूर्ति स्थापित है जो मन में उठने वाले तरंग को स्थिर रखने को प्रेरित करता है। मन ही ओ युक्ति है जो जीवन को एक दिशा देता है। जैसे जल में कोई भी आघात विच्छोभ पैदा कर देता है। उसी प्रकार मन में भी कोई विचार व्यक्ति को अस्थिर कर देता है। मन की प्रकृति शांत की है लेकिन संयम नहीं होने से मन भी अस्थिर हो जाता है। तन की साधना से मन की शांति को, मन की शांति से चित की शांति और चित की शांति से आत्म की शांति का संदेश यहां मिलता है।

हे भगवान आपने मानव को सतत ही शांति और स्थिरता का संदेश देते हुए परमानंद की प्राप्ति कहा है। भोगवादी समाज में आज मानव के पास बहुत कुछ होते हुए भी हताश और निराश है। जिसको आज भी आपकी सानिध्य की जरूरत है। विश्व शांति के लिए आपके अविष्मरणीय प्रयास के लिए आप युगो युगो तक याद किए जायेंगे।

भक्तजन आप भी भगवान बुद्द की ज्ञानार्जन स्थली जाये और हमें कॉमेंट बाक्स के जरीये जरुर बतायें की आपने क्या समझा जिससे की ज्ञान की दीप को एक दुसरे से जलकार संसार को सुख और शांति की ओर प्रोरित किया जाने का सतत चलता रहे।

भगवान बुद्ध का आशिर्वाद सबको प्राप्त हो। जय हिन्द।

लेखक एवं प्रेषक :: अमर नाथ साहू

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