टांगीनाथ धाम

Tanginath

Tanginath dham
Tanginath Dham

टांगीनाथ धाम झारखण्ड राज्य के गुमला शहर के दक्षिण में 75 किलोमीटर दुर एक पहाड़ पर स्थित है। यह धाम डुमरी बलॉक से 8 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। मंदिर लगभग 300 फीट के पहाड़ की ऊँचाई पर अवस्थित है। यहां पर पहुँचने के लिए लगभग 132 सिढ़ियां चढ़नी परती है। मुख्य मंदिर स्थल मंदिर परिसर के पुरव मे स्थित है, जिसका मुख्य द्वार पश्चिम की तरफ है। यहां पर सामने से जाने के लिए स्टील का घेरा को लगाया गया है। मुख्य मंदिर के गर्भ गृह मे प्रवेश करने के बाद वहां पर एक स्टील का गोलाकार धेरा मिलता है जिसमे टांगीनाथ भगवान की प्रितिकात्मक प्रतिमा है। वहां के लोगों ने बदलाया की यह प्रतिकात्मक प्रतिमा एक चंदन के लकड़ी को पत्थर मे रुपांतरित होकर ठोस बनने के फलस्वरुप यहां स्थापित की गई है। जिसपर भक्त जन जलाभिषेक करते है। नाग की कई मुर्ती भी यहां  रखी हुई है।

अपनी मनोकामना की पुर्ती हेतू यहां पर लोग दूर-दूर से आतें है। टांगीनाथ की पुजा अर्चना के समय भगवान महादेव को प्रणाम करने के स्लोक को पढा जाता है।  ततपश्चात प्रणाम करके भगवान को जलाभिषेक करते है। अपनी मनवांक्षित मनोकामना पुर्ती होने के बाद यहां पर लोग पत्थर का भार चढ़ाते है। यह विषेश प्रकांर का पत्थर होता है जिसे मंदिर समिति द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।

यहां के मंदिर परिसर मे मुख्य मंदिर के सामने बहुत सारे पुराने शिवलिग रखा हुआ है। यहां पर पौराणिक मंदिर के अवशेष को भी एक ढ़ाचांनुमा संरचना बनाकर रखा गया है जो कई टुकड़ो को मिलाकर बनाया गया है। इस पुरानी मंदिर के अंदर के दिवाल पर आकर्षक मुर्ती को देखा जा सकता है जो उस समय की मंदिर को प्रदिप्तीमान बनाने के लिए काफी है। पौराणिक मंदिर के दिवार पर कई तरह के आकर्षक डिजाईन बना हुआ है जो करीव से देखने पर बड़ा ही आकर्षक लगता है।

 कई तरह के शिवलिंग परिसर मे रखा हुआ है जो बिभिन्न काल खण्ड के प्रतीत होता है। कुछ क्षतिग्रस्त अवस्था मे खुले आकाश के निचे रखा हुआ है। कई तरह के पत्थर के सुन्दर कलाकृति की बनी प्रतिमा स्पष्ट रुप से दिखाई परती है। इसको संरक्षण की आज भी जरूरत है। यहां की कलाकृति को देखने से प्रतित होता है कि एक बड़ा कालखण्ड यहां के पुजा पाठ का रहा है। दुर्गा माता के शेर की पत्थर की प्रतिमा भी बहुत आकर्षक लग रही है। कई और तरह के देवी देवता के मुर्ती भी खुले आकाश के निचे रखा हुआ है।

आस्था के धनी लोग बाहर रखे कई प्रतिमा पर आपना चढ़ावा चढाकर अपनी मनोकामना के पुर्ती की आश लगाते है। भगवान शिव के शिवलिंग के कुछ प्रतिमा पर बहुत ही आकर्षक कलाकृति उकेरी गई है जो शिवलिंग को उदयमान बनाते है। लेकिन देखरेख के अभाव के कारण यह प्रतिमा यूं ही रखा हुआ है। कुछ शिवलिंग बहुत बड़ा है जो सबका ध्यान अपनी ओर बरबस खिंच लेता है। यहां लोग आस्था के साथ अपनी पुजा पाठ करते नजर भी आते है। इस जगह को भगवान परुषराम की तप स्थल भी कहा जाता है। परिसर मे भगवान परुषराम का फरसा और त्रिशूल रखा हुआ है जो यहां के मिट्टी मे धसा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि एकबार कुछ लोग इसको निकालने के लिए प्रयास किये लेकिन उनको सफलता नही मिली। भगवान के इस त्रिशूल और फरसा को देखा जा सकता है जो बर्षों से बिना जंग लगे खुले आकाश के नीचे रखा हुआ है।

 यहां पर पानी पहाड़ के ऊपरी सिरे से निचे के तरफ आती है जो स्नान करने तथा पीने के पानी के रुप मे इस्तेमाल किया जाता है। यहां का पानी काफी साफ है। स्थानिय लोगों ने वतलाया की यहां की पानी पहाड़ के ऊपर बने दलदली से आती है। यह दलदली मंदिर स्थल से 400 फिट ऊपर स्थित है। कहा जा रहा है कि इस दलदली से कई तरह की और प्रतिमा को भी निकाला गया है। इसके बारे मे समय-समय पर जानकारी मिलती रहती है लेकिन पुरी जानकारी अभी भी होना बांकी है।

इस जगह के बिकाश की आज भी जरूरत है जिससे की लोगो को यहां पर समय के साथ अधिक सुविधा मिल सके। यहां पर पहुँचने के लिए अभी तो मुल रुप से अपना साधन लेकर ही जाना श्रेष्कर होता है। क्योकि कोई व्यवस्थित व्यवस्था यहां उपलब्ध नही है। खाने पीने के वस्तू भी कमोवेश मिल जाती है। यहां शांति तथा स्वच्छ बातावरण के साथ छोटे-बड़े पेड़ भी अच्छे लगते है। अपने व्यस्त समय मे से कुछ समय निकालकर यहां आया जा सकता है जिससे आस्था के साथ यहां के भौगोलिकता का आनंद उठाया जा सके। यह हो टांगीनाथ धाम।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहू

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By sneha

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