भुक्खड कहीं का
आजकल के आपाधापी जिन्दगी के भागमभाग मे उलझन भी कम नही है। धर्म के घटने से आसुरी प्रबृति जन्म लेने लगी है। बेलगाम बिज्ञान रुपी धोड़े की चाभी उडण्डों के लग गई है, जिसमे मानव मुल्यो का चितन ही नही है। हर बस्तु को बिकाऊ मानकर बजार मे उतार रहा है। अमुल्यवान बस्तु भी हांफने लगी है कि कही उसका भी दाम न लग जाये। यदी ऐसा हुआ तो उसे भी बाजार की प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
प्यार मोहब्बत के नाजुक रिस्तो भी मौज मस्ती का साधन बनते जा रहे है। टुटते बनते रिस्तो की डोर कब कमजोर हो जाती है लोगो को पता ही नही चलता है। जिसे इसका भान हो जाता है, वह सतर्क होकर संभल जाते है। लेकिन रिस्तो मे गांठ तो बन ही जाती है।
प्रस्तुत काव्य एक प्रसंग को दर्शा रहा है जिसमे नायिका अपने नायक को दिक्कार रहा है। उसे प्रतिस्पर्धा के शिखर आरोहन करने को कह रहा है। सुख को जीने का साधन जिसे खोजना होता है वह अपनी कमजोरी का हल बाहर ही खोजता है। यही खोज उसे नये-2 मुस्किलों का सामना करने के लिए बाध्य भी करता है। फिर वह नियत का बिषय मानकर स्वयं को अलग कर लेता है।
यदि ऐसे लोगो का समाज मे प्रभुत्व बढ़ता है तो हमारा सामाजिक दायित्व की गरिमा ढ़हने लगती है। जिससे एक कमजोर समाज का निर्माण होता है। यही कमजोरी हमे एक दिन गुलामी की जंजीर से जकड़ देती है।
नायिका का पैमाणा आधुनिक जीवन की चकाचौध है, वह आगे देखने की बात कहकर बाजारबादी बिचारधारा के प्रति नायक को प्रेरित कर रहा है। नायक को भुक्खड़ कहने वाली नायिकी मे समय के साथ चलने की सिर्फ क्षमता ही नही है वल्की वह चुनौती का सामना करने के लिए सतर्क भी है।
यूँ तो प्यार मोहब्बत व्यक्ति की व्यक्तिगत सम्पति होता है। इस पर कोई लकिर खिंचना संभव नही है। लेकिन यदि प्रकृत की व्यवस्था की बात की जाय तो पाकृत मे नायिका को सर्वोत्तम का चुनाव कर जीव जगत के विस्तार का प्रभार प्राप्त है। वह अपने गुणत्मक पहलू के साथ ऐसा व्यवहार करती भी है। तभी तो कहा जाता है कि नारी को समझना मुश्किल है। नायक को सर्वोत्तम नही चुनना है उसे तो अधिक से अधिक फुल को परागित करना है।
मानव जीव जगत का एक सर्वोत्तम जीव है। इसलिए उसका सामाजिक व्यवहार जीवन के साथ भी तथा जीवन के बाद भी देखा जा सकता है। जीवन के साथ के व्यवहार तो दृष्टिगोचर होता है लेकिन जीवन के बाद वाला व्यवहार देव शक्ति के रुप मे समाज कल्याण के साथ उजागर होता है। जीसको समझने के लिए देव शक्ति का होना जरुरी होता है। इस भाव को अपना कर ही वह कृतार्थ हुआ जाता है की जीवन की संकल्प तो वह कभी जरुर पुरा करेगा। चाहे उसे जन्म पर जन्म क्यो न लेना परे।
नायिका की चुनौती पर बिफरा नायक अपने प्यार को पाने की भरपुर कोशीश करेगा। वह पिछे न देखकर आगे चलते हुए गहरे प्यार को एहसास को प्राप्त करेगा। यह प्यार की गरहाई उसे अपने भावना को उत्कर्षता देगा। जिसके बाद क्या खोया क्या पाया का बिचार कर नियत से समायोजन करेगा।
जीवन का यह पल बड़ा ही शक्तिशाली भाव को प्रकट करता है। इस तरह के बिचार वालो को समझाना संभल ही कठीन होता है वल्की काल के उद्वीग्न गती नियंत्रक ही इनको इनके भाषा का सही जवाव देता है, जिसके बाद का सामाजिक बिन्यास अपने मुल रुप मे लोटता है।
हे मानव देर से ही सही एक दिन तो सिखना होगा। आने वाला पिढ़ी भी आपसे पुछेगा, उसको समझाना भी होगा। दायित्व निर्वाह मे आपकी कोताही आपको अपने आप से गिरा देगा। फिर क्या जीवन और क्या सपना सबकुछ हवा हो जायेगा। संयम से बन्धन बना लिख ऐसी कहानी जिससे तुझे याद करेगा दूनीया और तू स्वतंत्र का एहसास करेगा। जीवन का यही दैर है जिससे बिजयी पथ पर चला जा सकता है। आगे बढ़ और बढ़ता जा। जय हिन्द।
नोटः- प्रस्तुत काव्य लेख मे बिचार को संकल्प तक लाकर शक्ति जागृत करने के लिए प्रेरणा श्रोत बनाया गया है। आप अपने बिचार को जरुर रखे। निचे दिये गये कॉमेंट वॉक्स मे लिखे बिचार लोगो के लिए प्रेरक होते है। यहां दिये गये जानकारी मे सिर्फ आपके बिचार ही लोगो को दिखलाई देगा। यह हिन्द
लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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