समय एवं परिस्थिति के साथ शारीरिक बिन्यास के अनुरुप व्यक्ति का जब समायोजन होता है तो उसका मानसिक अवेग भी एक महत्वपुर्ण भूमिका अदा करता है। इसके बाद व्यक्ति स्वयं को स्थापित करता है। यूँ तो समायोजन का कार्य निरंतर चलता रहता है। लेकिन एक मुकाम पर पहुँच जाने के बाद व्यक्ति का बहुत कुछ नियोजित होकर स्थायित्व कि ओर बढ़ने लगता है। एक अवस्था से दुसरे अवस्था (यानि किशोरावस्था से युवावस्था यथा) मे प्रवेश करने पर ज्यादा मुश्किल का सामना करना पड़ता है। प्रकृति के नियम के अनुरुप स्वतंत्र रहने वाले हर वस्तु को अपने संयुक्त होने की शर्तों के साथ समायोजित होना होता है। इसके वाद उसके संयुक्त की एक प्रकृति बनती है, फिर वह यही प्रक्रिया को आगे ले जाया जाता है। इसके संयुक्त होने की अंतिम प्रक्रिया भी निर्धिरित होती है, जिसे प्रखरता कहते है। इसके बाद उस संयुक्त की विनिमय का समय आता है। इससे होने वाले लाभ हानि के अनुरुप बिखराव तथा फिर युग्मन का संयोग होता है, जो प्रकृति मे सतत चलते रहता है।
प्यार भी इसी तरह की एक प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन एक स्वतंत्र व्यक्ति जब दुसरे के साथ प्यार के बन्धन से संयुक्त होता है, तो इस संयुक्त की प्रकृति हमारे समाज मे एक दुरगामी परिणाम छोड़ता है। परिवार निर्माण का ये पहला कदम है। परिवार के बाद ही समाज का निर्माण होता है। कहते है कि समाज को एक दृष्टांत मिल जाता है। आने वाली पिढ़ी की प्रकृति यदि इससे मिलता है तो उसका भी स्वभाव दृष्टांत के साथ मिलकर भावी समाज की दिशा बदल सकता है। लेकिन योगपुर्ण स्वस्थ्य समाज की पराकाष्टा को सर्वोच्यता प्रदान करने के लिए हर नियमन पर समय की पैनी नजर रहती है। समाज मे प्रत्येक व्यक्ति का नियमन समाजिक व्यवस्था से होता है। जिसके बाद विकाश की एक सुदृढ़ धारा चलने लगती है। एक उन्नत समाज की कल्पना को रेखांकित करने के लिए ही हम प्यार जैसे हमत्वपुर्ण प्रश्न का जवाव ढ़ुढ़ रहे है।
आज का प्रश्न तो आज के संदर्भ मे है लेकिन यह आगे भी प्रसांगिक रहेगा और समझने वालों को उद्वेलित करता रहेगा। आप की भागीदारी हमारे द्वारा बनने वाले लेख को संयमित करने का कार्य करेगा। एक उन्नत समाज के लिए प्यार की क्या दिशा होनी चाहिए इस पर बिचार चलता रहता है लेकिन हम आपके सहयोग से एक बिचार को प्रतिपादित करना चाहते है। अपका सहयोग हमारे उत्साह को एक गति देगा। मुझे आशा ही नही पुरा विश्वास है कि आपका जो सानिध्य लेख के माध्यम से बना हुआ है वह सतत जारी रहेगा। हमारा बैधिक समाज का ये रुख हमारे समाज को एक स्वस्थ्य बिचार को प्रचारित प्रसारित करता रहेगा।
प्रश्न को बिभिन्न दृष्टिकोण से बनाया गया है। समाज मे रहने वाले लोगो की प्रकृति के अनुरुप ही जबाव आये जिससे की एक सशक्त बिचार का प्रतिपादन हो ऐसा हमारा उदेश्य है। हमने ऐसा देखा है कि लोगो को जीवन निर्वाह की एक मानसिक व्यवस्था रहती है जिसपर वह सतत कार्यशिल रहता है तथा जीने की कोशिश करता रहता है। दुसरा वह होता है जिसे पर जिवन निर्वाह चल रहा होता है। लोगो से जब बात की जाती है तो वह अपने पहले वाले स्थिती का ही बात कहता है जिससे कि वास्तविक आंकलन मे गरबरी की संभावना बनती है। आप तो वही करो जो आप अपने जीवन को समझ कर चल रहे हो।
नोटः- अपका बिचार यदि सकारात्मक है तो आप इस लिंक को अपनो तक जरुर भेजे जिससे की हमारे मिशन मे उनका भी भागिदारी सुनिश्चित हो सके। जय हिन्द
लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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