मॉ वरदान दो

मॉ वरदान दो

वरदान एक ऐसा योग है जिससे गुण को स्वयं के अंदर जागृत किया जाता है जिसके मन चाही आकांक्षा को पुरा किया जा सकता है। इसके पश्चात हमें कठीनाई का सामना करने में आसानी होती है। वरदान को पाने के लिए एक कठीन साधना को साधक को अपनाना होता है। साधना के मार्ग को चुनने के लिए प्रेरणा भी अंदर से आती है जो लगातार हमे लक्ष्य की ओर जाने के लिए प्रेरित करते रहता है। जो हमे सफल होने के लिए लागातार अपने प्रयास को समीक्षा करते रहना होता है। हमारे अंदर की कमी को पाने के लिए हमे कोई मार्ग ढ़ुढ़ना होता है जो हमें सफलता तक पहुँचा सके।

वरदायनी माता के प्रति हमारे अंदर जो भाव होत है वह भाव हमारे अंदर उर्जा को जागृत करने की प्रेरणा देते रहता है। हमारे लक्ष्य तथा हमारे जीवन के बीच के अज्ञात पहलू को पुरा करने के लिए हमे माता की स्तुती करनी होती है जो हमे एकात्म बनने की प्रेरण देता है। हमे कठीन समय मे धौर्य धारण की भाव जागृत होते रहता है। यह याचना हमे निष्ठावान बनाने के लिए एक जरुरी भाव है।

ज्ञान की तरलता से हम सब परिचित है। ज्ञान का स्वध्याय तुलनात्मक है। इसके कारण इसके धारण मे बिविधता देखने को मिलती है। बास्तविक ज्ञान की खोज आज भी जारी है। मानव का चंचल मन जहां तक तरंगित हो पाता है हमारी जानकारी वही आकर सिमित हो जाती है। मानव के मन को स्थिर करने तथा सुखमय जीवन निर्वाह के आगे हम सोच भी नही रहे।

    ये अनन्त आकाश आज भी हमारे सोच से परे है। जब ये भाव मन मे आता है तो मन गुणित होने लगता है। इस गुणित मन को व्यवस्थित करने का योग जिसे मिलता है वह गुणी बन जाता है। जिसके बाद उसका प्रकाश फैलने लगता है। कहा जाता है कि ज्ञान की प्राप्ति का कोई सटिक तरीका नही है। आप इस प्रयास मे लगे रहे एक न एक दिन आपको मिल जायेगा। लेकिन इसकी निश्चित समय सिमा को समझा पाना संभव नही है।

    अनुभवी लोगो के व्याख्या से प्राप्त बिषय को हम सिखते सिखाते चले जाते है, लेकिन बदले परिस्थिती मे जाकर उलझ जाते है। बास्तविक ज्ञान वाले का उलझाव नही होता है। इसको पाने के लिए नियमित प्रयास जारी है। इसके तहत ही हम भाव प्रधान माता सरस्वती जी कि अराधना करते है।  इनमे हमको समस्त भाव का भान होता है। जिससे हमारी भाव शक्ति की समग्रता का भाव उत्पन्न होता है। यह एक दृढ़ योग है। इसके स्थिरता से ही हमे ज्ञान के प्रकाश का भान होने लगता है। कोई ऐसा भाव जो हमे उध्वेलित कर दे, जिससे हमारी कुंडली जागृत हो जाये और हम ज्ञान को हासिल करने के प्रति आरुढ़ होकर ज्ञानी बन जाये।

   माता से बरदान की इच्छा हमारी सतसंग का ज्ञान है जो हमे रोशनी की ओर धकेल रहा है। हमे माता से इस अनंत से आती रोशनी को पाने की इच्छा ही बरदान का अभिप्राय है। बिभिन्न योग के द्वारा प्राप्य उर्जा से हम स्वयं को उर्जावान करने की चेष्टा कर रहे है। बरदान मे माता की सम्पुर्ण योग का भान हमारे उत्साह को उच्चतर करता जाता है। यही उच्यता हमारी ज्ञान के परम को प्राप्त कर देगा।

प्रत्येक बर्ष का एक खास दिन होता है जब यह योग पुरे चरम पर होता है। नित किया जाने वाला से प्राप्त कौशल के दिर्ध का यह समय होता है। जहां से हमे कुछ नवनित बिचार को आने का अनन्द प्राप्त होता है।

     माता से हमारी ये याचना हमे शक्ति से भर दे रहा है। हमे अपने आत्मिय यात्रा से लेकर जीवन के बिभिन्न स्वरुप के योग का भान के साथ हमारा तेज प्रखर होने लगा है। साधना का मार्ग अपनाकर हम उस दिव्य शक्ति को पा सकते है जहां से हमे फिर पिछे मुड़कर देखना नहीं परेगा। याचना का ये भाव आपके मन को भी जागृत करेगा। जितना आपका बिचार शक्ति दृढ़ होगा उतना ही आपको मार्ग आसान लगने लगेगा। इस काव्य लेख के पाठन मात्र से आपके कुंडली मे संलयन होने लगेगा यदि आप मे नियंत्रण का भान है तो आप जरुर स्वयं को उर्जावन कर लोगे। ऐसा मेरा विश्वास है।

  नोटः- आप अपने बिचार का पिटारा जरुर खोलें और कॉमेट बॉक्स मे बिचार लिखें। मुझे आपका सानिध्य प्राप्त होगा और मै अपनी ओर से आपको नमस्कार कहता रहुँगा।

लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु

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By sneha

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