गायत्री वंदना
माता गायत्री की वन्दना से हम उनके दिव्य शक्ति को अपने अंदर जागृत करते है। दिव्य शक्ति को मंत्र उर्जा के रुप मे वेदो मे स्थान दिया गया है। चुकी मानव, भाव का एक युक्ति यंत्र है। इसकी सारी उर्जा इसके नाभी मे कुंडलीत रहती है, जो सुषुप्तावस्था मे विधमान रहती है। इस कुंडलीत उर्जा को जिस भाव के रुप मे हम क्रियांवयित करेगे, वैसा ही हमारे चित का स्वरुप हो जायेगा। इसलीए मंत्र शक्ति, माता गायात्री के एक एकात्म स्वरुप का भान करते हुए, उनके वेदमंत्रोयुक्त भाव के द्वारा, हम स्वयं को उर्जावान करते है।
हमारी जागृत उर्जा का प्रावह, सतत बना रहे, इसके लिए हम इसका नित अभ्यास करते है। हमारे नित अभ्यास से, हमारा स्थूल शरीर एक दिव्य पुंज बना जाता है, जिसका एक दिव्य आभा मंडल होता है। यही रुप हमारी आत्मा यानी प्राण को उर्जावान कर देता है। शरीर ही उर्जा साधन का एक मात्र यंत्र है, जिसपर प्राण शक्ति समाहिता है। प्राण शक्ति को उर्जावान करने के लिए हमे, शरीर को साधन बनाकर आत्मा को शक्तिवान बनाना होता है। जिस तरह एक कण अपने प्रकृती के अनुसार उर्जावाहन कर सकता है उसी तरह यदी आत्मा लगातार दिव्य उर्जा स्त्रोत के पास रहता है तो वह भी उर्जावान होने लगता है। उसके संयुग्मन का योग बढ़ जाता है। इस तरह मानव का जागृत उर्जा का स्तर, जब उसके पुर्णाता के पास पहुंचता है, तो उसे परमात्मा का भान होता है। उसे प्रकृत के कण – कण मे बिधमान ज्ञान के अपार भंडार का भान होने लगता है।
गायत्री मंत्र युगो – युगो से इस ब्रम्हाण्ड मे उच्चरित होकर एक उच्च मंत्र शक्ति का स्थान पा चुका है। जिसका मनोनयन करने से व्यक्ति अहलादित होता है और गुणकारी भाव को भी हासील करने के प्रती आरुढ़ हो जाता है। इस मंत्र शक्ति का स्त्रोत ब्रम्हा को बनाया गया है, जिस दिव्यता को यह दर्शाता है तथा जिस योग शक्ति से समस्त जीव का कल्याण होता है, उससे यही प्रतीत होता है, की साधना शक्ति ही एक अंतीम उपाय है, जिससे संसार से विरक्ति तथा मुक्ति दोनो मिल सकता है। सुख कि कामना हमे मुक्ति की ओर सोचने को विवस करता है। यह अनायास भी नही है, क्योकी श्रृजनशीलता का अध्याय तो, सुख की कामना से ही बनता है। दुख तो समंजस्यता के बिगरने से आता है। इसलीए हमे एक स्थाई या स्वयं सिद्ध होने वाला शक्ति चाहिए, जो हमे सतत उर्जावान करता रहे तथा बिभिन्न परिस्थिति मे भी हमे आनन्दित करता रहे। इसे ही हम शाश्वत आनन्द कहते है। यही पर हमारी कामना का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। मानवी कामना का पुरा अध्याय यही तक होता है।
बिभिन्न साधनो का उल्लेख करते हुए हर कामना को पुरा करने की मांग करना कठीन है, क्योकि समय और परिस्थिति एक जैसा नही रहता है, और समय के साथ व्यक्ति का कामना भी बदलती रहती है, इसलीये इस वंदना मे एक ऐसे तथ्य को सामिल किया गया है, जो गायत्री मंत्र के सार के साथ हमारे अंतःकरण मे भाव भी पैदा करता है, जो हमे उद्वेलित करता है। हमारे भाव को एक शक्ति से जोड़ने का जो बिचार बनता है, उससे हमारा समस्त कल्याण संभव है। शक्ति से समर्थवान हो जाने के बाद हम समायानुकूल साधन विकसित कर सकते है। साधन की साध्य तथा साध्य से साधन का तो प्रवर्धन होता रहता है और हम परमानन्द की अनुभूती करते है, और क्या चाहिए इसके सिवाय कि मुझे दिव्य शक्ति के स्त्रोत का साधन से युक्ति होने का योग मिल जाये।
कल्प बृक्ष का वर्णन शास्त्रो मे मिलता है, वह भी समय के अनुकूल बदले परिस्थिति का सामना करने के लिए ही कहा गया है। कामना ही हमारी दुख का कारण है और बिना कामना, परम शक्तिवान होना संभव भी नही है। इसलिए जीवन का सही समाधान एक ही है वह है मंत्र शक्ति भाव युक्त माता गायत्री की नित बंदना, जो हमारे कार्यउर्जा को जागृत कर हमे सशक्त करती है।
हे माता गायत्री हर विधा का वर्णन कर पाना संभव भी नही क्योकी जीवन यात्रा तो अनंत है। हम इस अनंत यात्रा के राही है, हमारी वंदना स्वीकार करो और हमे इस यात्रा के लिए उर्जावान करो। हम इस वंदना के भाव से सतत उर्जावान होकर जन क्ल्याण करते हुए तेरे परम धाम को प्राप्त हो, यही हमारी अंतिम कामना है। जय मां गायत्री
लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
नोटः- इस लेख के किसी भी अंश मे यदि आपको कुछ कहना है तो लिखे। आपका मार्गदर्शन हमरे लिए यथेष्ट तो रहेगा ही, साथ ही आत्मियता भी बढ़ेगी। जय मां गायत्री, कल्याणमस्तु
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बंदना के भाव के साथ गायन से हमारे हृदय में जो स्पंदन की टतस्थ्ता बनता है। वह हमारे लिए किसी आशीर्वाद से काम नहीं है। जय मां गायत्री