मुर्ती पुजा

मुर्ती पुजा                                           

          मुर्ती पुजा का इतिहास बहुत पुराना है। मानव ने जबसे जीवन को समझना शुरु किया तभी से उन्होने चित्र रुप का निरुपण किया। उसके भय को एक सहारे की जरुरत थी। यही सहारा मुर्ति के पुजा का स्थान सुनिश्चित किया। मानव के बिकाश की यात्रा का इतिहास आज के मानव को बुद्दिमान सावित करता है। लेकिन मुल बिषय डर आज भी है। डर का नियोजन समय के साथ तथा व्यक्ति दर व्यक्ति अलग – अलग होता है, तथा किया जाने वाला उपाय भी अलग होता है। लेकिन धार्मिक मान्यता हमारे अंदर जो भाव पैदा करता है, उससे धिरे – धिरे हमारे मनः स्थल मे एक बिचार शक्ति का बिन्यास होने लगता है और यही बिचार शक्ति हमारे जीवन को उत्कृष्ट बना देता है।

         चंचल और कल्पणाशील मन को जब एक बिचार स्तंभ के सहारे समायोजित किया जाता है, तो कई तरह के नवीन बिचार हमारे मन मे आने लगता है। इन बिचार के योग से ही मानव के बिकाश की यात्रा का सुत्रधार होता आया है। जीवन को आगे ले जाने के लिए जिन – जिन भावो की जरुरत थी, उसकी एक प्रतिमुर्ति बनाई गई। जिसमे यह भाव समाहित किया गया की यह इस भाव का परम लक्ष्य है। जिससे की मन की बृति नियंत्रित तथा समायोजित होना आसान हो गया। यह सुविधा आम जन के लिए उपयोगी सावित हुआ। बिकाश की नई नई कहानीयां गढ़ने लगे। इसतरह मुर्ती पुजा समाज के मानसिक नियंत्रण और स्वभाव के विकाश मे उपयोगी सिद्ध हुआ।

         भाव के बनते बिगरते रुप ने मानव को बिवेकी बना दिया अब उसमे तर्क की क्षमता का बिकाश हुआ, तथा इसी तर्क के साथ वह नयी – नयी संभावना को तलासने लगा। यहां से मुर्ति पुजा के एक अलग समग्र भाव के चिंतन का बिकाश हुआ, जो जीवन के आर पार की समझ रख सकता था। इसके बिस्तार के साथ ही मुर्ति पुजा का बिरोध भी शुरु हुआ। लेकिन यह कार्य आसान नही है। समग्र भाव के एकात्म रुप से जीवन को आगे ले जाना वाला कार्य वहुत कठीन है। इसलिए जीवन के नियमन के सिद्धन्त का बिकाश हुआ जिसके सहारे व्यक्ति आगे जा सके। स्वयं सिद्ध मन को रोककर एक सिद्ध बिचार के सहारे जीवन को जीना सिखाने वालो ने एक पुरी भाव भंगिमा का निर्माण किया जिसका समय के साथ बिकाश होने लगा।

         मुर्ति पुजा के बिरोधी को अपने मुल भाव को बनाये रखने के लिए सतत एक भाव जगाने वाला प्रयास करना परता है जिससे की मुल भाव की स्थिरता को बनाये रखा जा सके। जबकी मुर्ती पुजा मे ऐसा नही होता है। एक चित्र की निरिक्षण ही उसकी प्रकृति को समझा देता है।  उसका भाव स्वयं ही बनने लगता है। मुर्ति को समझने के लिए ज्यादा समझ की जरुरत नही होती है। एक आस्था का रुप तथा अवलोकन धिरे धिरे सब कुछ सीखा देता है। लेकिन मुर्ति पुजा के बिरोधी को लगातार अपने बिचार के साथ व्यवहार को बनाना परता है।

         आज के मुर्ती पुजा को मनाने के लिए पहले एक प्रतिमा को बनया जाता है। इसके बाद इस प्रतिमा को व्यवस्थित किया जाता है। उपासना स्थल पर व्यवस्थित करने के बाद इसमे भावपुर्ण मंत्र शक्ति के द्वारा प्राण प्रतिस्ठा किया जाता है। इसके बाद इस प्रतिमा को स्वभाविक बृति के अनुसार परम शक्ति शाली भाव पुर्ण बिचार के द्योतक के रुप मे पुजा अर्चना की जाती है। इस समय भक्त के मन जो बिचार उत्पन्न होता उसका अंदाजा लगाना कठिन है। हर व्यक्ति अपने मन को संयमित करके इस दिव्य शक्ति का कृपा पात्र बनना चाहता है। यहां पर बिचार को स्वयं की बृति से लेना होता है, जिसकी स्वतंत्रता है, इसलिए भक्त के भक्ति की समझ भी अलग – अलग होती है। अलग – अलग भाव के लिए अलग – अलग मुर्ति की पुजा की जाती है जिसमे साबके भाव की प्रधानता भी अलग – अलग होती है। जिससे ज्ञान की अवधारणा को पाना आसान हो जाता है। चिंतन मनन के प्रभुत्व की प्रधानता बनी रहती है। इससे व्यक्ति के चेतना के साथ – साथ स्वयं की प्रकृति का भी बिकाश होता है। संयम तथा नष्ठा का नियोजन स्वतः होने लगता है।

          मुर्ति बिरोधक को लगातार बिचार के स्थापना के लिए समुह का एकत्रीकरण करना होता है तथा बिचार के स्थापना के लिए भौतिक स्थिति की व्याख्या करना होता है। एक दवाव की प्रकृति भी रहती है। मुर्ति बिरोधक की एकत्रीकरण के कारण एक बिचार का स्थापना होता है तथा एक दिशा तय होती है। एक कार्ययोजना पर चलना होता है, जिससे उसके प्रभुत्व का बिकाश होता है। लेकिन इसमे ज्ञान की अवधारणा सिमित रहती है क्योकि तर्क शक्ति का अभाव होता है। स्वयं की शक्ति का नही वल्की कार्य योजना पर चलकर आगे बढ़ना होता है।

मुर्ति बिरोधक ने अपने सुदृढ़ व्यवस्था के सहारे मुर्ति पुजक मे फुट डालने मे समर्थता को आसानी से हासील कर लिया। तर्क के अभाव होने के कारण इनका गुसैल होना स्वभाविक था, जिससे की तोरफोर की संभावना का जन्म हुआ। इसका भौतिक बिकाश खुब हुआ। लेकिन मानसिक स्तर पर बिकाश की यात्रा अवरुद्ध हो गया।

मुर्ति पुजक के ज्ञान के बिकाश की धारा का प्रवाह चलता रहा। वह स्वयं को समय के साथ चलने के भाव को जानने की क्षमता के कारण, लगतार निचे स्तर तक पहुँच गया। यहीं से इसके बिरोध की बिचार का जन्म हुआ। अब मुर्ति पुजक को समझ आने लगा  की उसको आगे जाने के लिए संयुक्त होने की जुरुरत है। तब जाकर बड़े ब़ड़े आयोजन के साथ ही एक संमग्रता के भाव को जन्म दिया गया तथा मुर्ति बिरोधक का समना करने की क्षमता ही लगातार हासिल करने की कोशिस रंग लाया।

अब ओ दिन दुर नही जब मुर्ति पुजक अपने पुराने गौरव को पाकर आगे निकल जाये, तथा आने वाला समय मुर्ति बिरोधक के कयामत के दिन का समना करना पड़े। क्योकि बिचार का अंत तो समय के साथ तथा युद्द के बाद ही होता है। एक को श्रेष्ठ सावित करना होता है। प्रकृति का यही नियम है जिसके सहारे जिवन फिर से श्रिजित करने का क्रम चलने लगता है।

हिन्दु धर्म की बिबिधता का कारण उसके उपासना शक्ति का होना है। उसके बिचार के ग्रहण की छुट के साथ ही उसका तर्क शक्ति तथा उसका उपयोग ही इसको शक्तिशाली बनाता जा रहा है। आज शक्ति के बिभिन्न स्त्रतो को एक बिचार के साथ लाकर वर्तमान चुनौती का सामना किया जा रहा है। इसका प्रभाव दिखने भी लगा है। हमलोगो को इसमे अपना योगदान देकर अपने गौरवशाली प्रभुत्व को पाना होगा। जिससे हमारे आत्म शक्ति का बिकाश के साथ – साथ परमानन्द के साथ जीवन जीते हुआ परम धाम की ओर प्रस्थान कर सके। मुक्ति का हमे एहसास हो।

 हे मानव तुम अपने मुल बृति से बाहर निकलकर साधक बनो तब ही तुम्हारे अंधकार का आवरण हटेगा तथा एक नवीन जीवन के अवधारण का संचार होगा। पुजा पद्धति के आधार पर नही बल्की मानवता के स्वाभाविक गुण के आधार पर तुम जीवन के नवीन भाव को गढ़ सकते हो। तुम तो वही करो जो तुम्हारा साधक मन कहता है। तुम्हे प्रकृति का साथ मिलेगा तथा एक दिन अपने स्वर्णिम जीवन को प्राप्त करते हुए जीवन मरण के प्रभाव से मुक्ती का आत्माीक आन्द मिलेगा। क्योकि तुम तो किसी बंधन मे हो ही नही तुम तो प्रकृति के नियोजक हो। तुम्हारा सदा कल्याण होगा। तुम्हारा जय हो।

लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु

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By sneha

One thought on “मुर्ती पुजा

  • मुर्ती पूजा से एकाग्रता को आसानी से पाया जा सकता है। अपने भाव के अनुसार अपना संकेत को चुनकर स्वयं को उर्जा वान करते हुए परम बैभव को पाना आसान होता है। अन्य सारे साधन कठीन तथा उवाऊ है जो सहज नही है। गृहस्थाश्रम जीवन के लिए यह एक सफल युक्ती है जिससे जीवन की समग्रता को समझा जा सकता है। जय हिन्द।

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