रामनवमी
भगवान राम का जन्म भारतीय समाज के मर्यादा को मिले उचाई के साथ एक सुखद राष्ट्र नायक के लिए याद किया जाता है। राजा राम मर्यादापुरुषोत्तम है। उन्होने जो समाज मे राष्ट्र के अवधारणा को लेकर जिस समाजिक मुल्य को स्थापित किया उसका मुल्यांकन आज भी किया जा रहा है। यह कार्य तव तक चलेगा जबतक की मानव स्वयं को सवलता प्राप्त न कर ले।
राजा राम ने पृतिभक्ति को सर्वोत्तम माना जिसका निर्वाह उन्होने अंत तक किया। अपने भार्या के प्रति अपने जिम्मेदारी को भाव पुर्ण व्यवहार से सराहा। साथ ही राष्ट्र के भावना को उपर रखा। यदि समाज सुखी रहेगा तो हम भी सुखी रहेंगे क्योकि व्यक्ति तो समाज का ही भाग होता है। इसलिए एक स्वस्थ्य जीवन के लिए समाज कं अंदर एक स्वस्थ्य बिचार तो होना ही चाहीए। माता सिता के राष्ट्र के प्रति श्रद्धा तथा त्याग को आज भी लोग सर्वोत्तम मानते है।
मानव समाज को संवेगी बनाने के लिए जो दृष्टांत आज हम देख रहे है उसके लिए हमारे ऋषि मुनियो ने काफी गहन शोध किया उसके बाद ही इन मुल्यो को समाज मे स्थापित होते हुए पिढ़ी दर पिढ़ी इसकी अविरल धारा चली आ रही है।
आज भी हमे अपने ऋषि मुनियो का सानिध्य प्राप्त है। लेकिन विज्ञान की उड़ान ने मानव को कुठित कर दिया है। हमारे ऋषि मुनि मानव को सर्वोच्य मानकर कार्य करते थे आज भी यदि हम ज्ञान की मूल्यांकन करते है तो कहते है यह व्यवहार से ही आता है। इसका कोई सटिक समिकरण नही है। जवकी इस कार्य की शुरुआत हिन्दु धर्मो मे बहुत पहले हो चुका है। समय को त्योहारो तथा अनुष्ठानो मे बांधकर मन को समय के साथ निर्णायक राह पर चलते हुए जीवन उत्कर्ष को प्राप्त करने की अदभुत योजना को पा लेता है।
रामनवमी का त्योहार हमे भारतीय जनमानस को एक संदेश देता है जीसमें जीवन के सफल बनाने का अहम गुण छिपा है। ममता, लोभ लालच, भाईचारा, युद्ध, योजना, ख्याति का अदभुत संगम मिलता है। बड़ा कौन है इसता जबाव रामायण के लवकुश कांड से संदेश देने की बात गुरु के द्वारा कही गई है।
हे मानव जीवन की बास्तविक रुप को समझना कठिन है लेकिन जो हम देख रहे है उस भौतिक रुप को उत्कृष्टता प्रदान करने के लिए जो हमारे पास दृष्टांत उपलब्ध है और हमे जिसका ज्ञान सहजता से प्राप्त हमे उसी के अनुरुप अनुसरन करते हुए अपने जीवन लक्ष्य को प्रप्त करना चाहिए। भगवान भी महादेव को अपना आराध्य कहते है तथा महादेव भी उनको इसी बात कहते है यह भाव पुर्ण संवाद हमे जीवन के आर पार देखने के लिए प्रयाप्त है, लेकिन कर्म को करने के लिए जिस संयम या बिचार की जरुरत होती है वह हमे इसी तरह के प्रेरक प्रसंग से ही प्राप्त होता है।
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लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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