

आरती लक्ष्मी जी की
लक्ष्मी माता की नवीन आरती हमें जीवन की गहराई मे जाकर जीवन के अती महत्वपुर्ण प्रसंग को उधृत करते हुए एक भाव पुर्ण आवाह्न को व्यक्त करता है। माता का साक्षात प्रकटीकरण के भाव के साथ आरती का गायन हमारे मन को तरंगित करते हुए हमे एक लक्ष्य की आगे बढ्ने का प्रेरणा देता है।
कुछ लोगो का मानना है कि सारे कार्यो का मूल भाव धन ही है जिससे सारे सुखो को पाया जा सकता है, लेकिन यह पुर्ण सत्य नही जान पड़ता है। पुर्ण सत्य तो व्यक्ति का गुणात्मक मान होता है जिसका मुल्यांकन कर पाना आसान नही है। यह समय एवं परिस्थिती के साथ आगे बढ़ते रहता है।
गुण के साथ धन को पाने का योग माता के आराधना से ही संभव होता है। यदि यह भाव मन मे उध्वेलित है तो व्यक्ति को पुर्ण फल की प्राप्ति होती है। आरती गायन के समय व्यक्ति का भावपुर्ण जुराव जरुरी होता है जिससे की उसको लक्ष्य की प्राप्ती हो सके।
लागातार गायन के बाद भाव का प्रभाव व्यक्ति के ऊपर पड़ने लगता है तथा व्यक्ति समय के साथ सफलता को प्रप्त कर सही मायने मे धनी हो जाता है। धन से खुशी आती है खुशी से मन प्रफुल्लित रहता है। प्रफुल्लित मन नये-2 प्रयोग को सहजता के साथ स्विकार कर लेता है जिससे की उसकी बिकाश की गति तेज हो जाती है। आरती का नियमित गायन हमारे मन वांछित भाव को नियंत्रित करती है।जो समय के साथ हमारे जीवन मे खुशी को गढ़ देता है।
आरती और कामना
धन की कामना सुख के साधन को दर्शाता है। भौतिक जीवन की सुख की कामना को पुरा करने के लिए धन की आवश्कता होती है। धन की आवाध प्रवाह बना रहे इसकी कामना हम करते है, जिससे की जीवन की सुख की धारा को बनाये रखा जा सके। इस भाव को कार्य रुप देने के लिए हम लगातार प्रयासरत रहते है। यही प्रयास हमे दिव्य रुप माता को याद करने के लिये प्रेरित करता है। 2021 लक्ष्मी माता की आरती इसी भाव को दर्शाता है। माता हमारे सामने है और हम माता से अपनी मनोकामना पुर्ति के लिए उनके शक्ति को जागृत करते है। हमारी कार्य उर्जा के क्रियांवयन का भाव माता को होता है और हमे माता का पुरा आशिर्वाद प्राप्त होता है।
आरती के पाठ करते समय तथा बाद मे हमारी मनोवृति मे जो उतार चढाव आता है, वही हमारी भक्ति के शक्ति को दर्शाता है। यह नवीन आरती हमारी इसी लक्ष्य को पुरा करता है। माता के भाव को शब्द रुप मे व्यक्त करना बड़ा ही कठीन कार्य है लेकिन हमने एक समग्र भाव को सुचित करता हुआ आरती माता को समर्पित किया है। आप इसका जब पाठ करेंगे तो आप की भाव भी माता के प्रती सापेक्षता को प्रदर्शित करेगा। पुजा करने की आस्था के साथ-साथ लोगो का अपना एक आत्मिय जुड़ाव भी होता है, जिससे वह भावपुर्ण अभिव्यक्ति के द्वारा आपनी इच्छा की पुर्ती करता है। यह आरती इसी आकांक्षा को पुरा करता है। इस आरती के गायन से आपके अंदर जो भाव पुर्ण बिचार गढ़ता है, वह आपके कार्य उर्जा को बढ़ा देगा। आपका यही बृती ही आपके उत्साह को उच्च स्तर पे ले जायेगा। ये उत्साह आपके कार्य आनन्द को गुणित करेगा। जिससे आपके व्यपार मे प्रखरता आयेगी। यह प्रखरता आपके लक्ष्य को आसान कर देगा।
माता लक्ष्मी की स्थिरता बनी रहे यह भाव भक्त के मन मे रहता है। समय के साथ होने वाला परिवर्तन उसके अनुरुप हो ऐसी कल्पना मन मे रहती है। इसी भाव को गढ़ता यह आरती आपके नित गायन के साथ आपके मनोभाव को रुपांतरित करेगा। इसमे माता के दिव्य तत्व का समावेश है जिससे की आपका समग्र बिकाश संभव है। आपके विश्वस की कुंजी आपके पास है। जितना सशक्त आपका विश्वास होगा उतना ही आपका प्रयास प्रवल होगा तथा उसी के अनुरुप आपका बिकास भी होगा। मनोयोग बना रहे इसलिए इसकी भावपुर्ण गायन जरुरी है। दिव्य रुप माता आपके अंदर के भाव को गुणित कर देती है, बस जरुरी है, आपको एक सशक्त भाव का निर्माण करना, जो धन के देवी माता लक्ष्मी जी को समर्पित हो, क्योकि आप की आसस्था इसी मे है।
कर्म प्रधान यह गायन कार्य के अनुरुप मनोयोग को बनाता भी है। इस आरती के माध्यम से हम माता के दिव्य रुप से उर्जावान होने का योग प्राप्त करते है। हमारा यह प्रयास ही हमे सबलता बना देता है। गुणकारी भक्त माता के प्रति अपनी अपार श्रधा को व्यक्त करने के लिए आरती लक्ष्मी जी का जो चयन करता है, उसकी हर मनोकामना माता पुरी करेंगे ऐसा मेरा पुर्ण बिश्वास है। इसी बिश्वास से योग माता के दर्शन भाव को जागृत करने के लिए ये रचना की गई है।
गुणकारी होते हुए भी धन की लालसा का पुरा नही होना, भक्ति की कमी तथा मन की चंचलता से ऐसा का होता है। माता के प्रति भक्त की आपार भक्ति के कारण यह दोष दुर होकर भक्त को एक प्रभावकारी व्यक्ति बना देता है। आरती गायन के सामय शब्द के साथ-साथ दृष्टि का भी योग बना रहना जरुरी है। एकाग्र मन यदि भटकना भी चाहे तो आरती के शब्द की कड़ीयां उसे बांधे रखती है। यही गुण इस आरती को प्रभावकारी बनाता है।
हे माता लक्ष्मी आपका भाव जो भक्त के मन मे प्रस्फुटित हो रहा है उसका समायोजन हो, उसकी प्रखरता बनी रहे। भक्त की हर मनोकमना पुर्ण हो ऐसी कृपा बनाये रखना। कर्म करता मानव आपकी रचना मे न उलझे उसके ऊपर आप अपनी दृष्टि सदा बनाये रखना। इस आरती के गायन के साथ-साथ गुण के भी बिकाश भक्त करेगा जिससे की उसके धन की प्रवाह सदा बनी रहे। आरती तो आपको ध्यान मे रखकर ही भक्त करते है। हमारी भक्ति मे यदि कोई दोष हो तो वालक समझकर भक्त के प्रति आपनी क्षमा का भाव सदा कायम रखना। हे मां अपनी कृपा बनाये रखना।
हे मानव, तुम्हारे अंदर सफलता की असीम संभावना छिपा हुआ है, तुम अपने भाव को प्रवल बनाने के लिए योग साधना का भाव गढ़ लो फिर उसपर पुर्ण रुप से अरुढ़ हो जाओ। तुम्हारा भाव तुमको तुम्हारे लक्ष्य तक पहुँचा देगा। जहां से तुम्हे फिर से वापस आना नही पड़ेगा। जो भाव तुमने गढ़ा है यदि वह धन प्राप्ती का सबल मार्ग है तो इसके व्यापक भाव को भी सम्मिलित करो जिससे की तुम समाज का कल्याल कर सको।
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लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु
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