सावन की चौथी सोमवारी
भगवान शिव को पुष्प अर्पित करते हुए मन मे जो उत्कृष्ट भाव बनता है, उस भाव को दर्शाता यह कविता हमें साधना तथा शक्ति के मार्ग को सशक्त करता है। भाव ही भगवत्व प्राप्ति का उत्तम स्त्रोत है। इसलिए भाव प्रधान यह पुजा आज पुष्प की प्रधानता को दर्शाता है। पुष्प एक बस्तु मात्र है, लेकिन इसके प्रति जो भाव मन मे बनता है, इसी से इसकी प्रधानता भक्तो के लिए अधिक है। भाव के कारण ही भगवान भक्त के करीव होते है। एक सशक्त भाव का साधक होना बहुत जरुरी है। यह भाव अनादि भी होता है, तथा प्रेरित भी होता है। जो भी हो हमारे अंदर बिराजित रहने वाला यह गुण ही हमें शक्ति धारण करने का मार्ग बनाता है।
पुष्प पौधा के लिए नये जीवन की आधारशीला रखता है वहीं अपने आकर्षण से बिशिष्टता का चुनाव भी करता है।पुष्प पौधा का एक गुणात्मक पहलू है। जिसका प्रकटीकरण समय के साथ होता है। भगवान को अर्पित होने वाला ऐ खास तरह के ही पुष्प होते है। ये पुष्प हमारे बिचार के प्रतिकात्मक रुप मे अर्पित होते है। जिसको आधार मानकर हमारा कोमल ह्रदय एक खास तरह के भाव से भर जाता है। यही भाव का बार – बार बनकर हमारे मन को सुदृढ़ करता हुआ हमे उल्लासित तथा प्रसन्नचित करता है।
पुष्पदल को अर्पित करते हुए हमारा ध्यान पुर्णतः एकाग्रचित हो जाता है। इसके साथ अर्पित होने वाला भाव भी एकात्म का रुप धारण करके हमारी चोतना शक्ति को जागृत कर देता है। यहीं पर हम भगवान के करीव होते है। भाव का बनना हमारी शारीरीक आभामंडल को सशक्त बना देता है। जिसकी पहचान भगवान द्वारा आसानी से कर लिया जाता है। मन मे तरंगित होने वाला भाव यही से संपादित होता है। हमारी भाव शक्ति का साधक हमारा शरीर है, लेकिन प्रेरक हमारा मन है। मन की शक्ति को बनाने के लिए ही बार-बार पुष्प दल अर्पित करके हम ध्यान की उच्चता को पाते है।
हे भगवान सदाशिव, सावन की सोमवारी का ऐ महान पर्व जो आपके द्वारा भक्तो को प्राप्त हो रहा है, उसका पुर्ण लाभ उसे मिले तथा वो आपका गुणगान सदा करता रहे, यही हमारी कामना है। हमारा ध्येय एकाग्रचित बनाने की कला को एक उपाय प्रदान करना है। आप तो त्रिकालदर्शी है, आपसे कुछ भी छिपा नही है, लेकिन प्रेरणा पाकर जो सर्वश्व अर्पित करता है, वह आपके ज्यादा करीव होता है। इसी को साधना मानकर हम यह कविता भक्त तक पहुँचा रहे है। हमारा भाव लोगो को यथेष्ठ लगे इसी कामना के साथ एक पुष्प कमल आपको अर्पित।
जय शिव जय शिवा
लेखक एवं प्रेषक:: अमर नाथ साहू
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