Good Morning Nature

Good Morning Nature

हे प्रकृति आपका जय हो। आपको समझकर ही आज मानव अपनी बिकाश यात्रा को आगे बढ़ा रहा है। सुर्य की गति धरती पर जीवन को नियंत्रित करता है, क्योकि उर्जा के वितरण का एक मात्र नियमित स्त्रोत यही है। प्रभात के साथ ही जीवन का बिखराव होने लगता है, तथा सुर्यास्त के साथ ही जीवन सिमटने लगता है। यह बिखरना और सिमटना हमारे दैनिक जीवन का भाग बन गया है। हम इसका अभ्यस्त हो चुके है। इसलिए हम इससे आगे सोचते है। यह सोच हमे प्राकृत से अलग कर देती है। हम यहां स्वयं की आवधारना के सोच को लेकर…
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हिन्दी नव वर्ष

हिन्दी नव वर्ष

हिन्दी नव वर्ष भारत एक कृर्षी प्रधान देश है। यहां के वन उपवन से ही सुख और समृद्धी आता है। जिवन को उद्वेलित करने तथा नयापन का एहसास करने के लिए हमारी प्रकृति ही हमारा आधार है। कहा जाता है कि अन्न से आनन्द आता है। फसल के कटकर घर आने के बाद मन मे प्रसन्नता तो आता ही है वाग बगीचे भी प्रकृति के बदलते मौसम को स्वागत करते है। फलदायी बृक्ष मज्जर से लद जाता है। मधु की मादकता चलती है तो किटपतंग परागन के लिए मडड़ाने लगते है। प्राकृत अपने नियम को इसतरह सुचिबद्द किया है कि…
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सुशासन बाबू

सुशासन बाबू

राजनिति सामाजिक परिवर्तन का आईना होता है जिसमे हमे समाज की परिवर्तन की दिशा का ज्ञान होता है। गतिशिलता जीवन की धारा है जिससे हमारी आत्मा को शक्ति मिलती है वही पर स्थिरता हमारा स्वभाव है जिसमे शरीर को आनन्द मिलता है। इस दोनो भाव को समस्त रुप को एक साथ क्रियांवित होते हुए यहां हम देख सकते है। सुशासन की बात तब होती है जब समाज मे स्थिरता की स्थिति बिगड़ जाती है। इसके बिगड़ने का कारण हमारा स्वार्थ पुर्ण व्यहार होता है, जिससे समाज मे ध्रवीकरण को बल मिलता है। भाव पुर्ण बिरोध बिकाश को प्रदर्शित करती है…
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जोगीरा9

होली के जोगीरा को दर्शाता यह काव्य लेख अनोखा है। होली के जोगीरा2 होली के जोगीरा3 होली के जोगीरा4 होली के जोगीरा5 होली के जोगीरा6 होली के जोगीरा7 होली के जोगीरा8 होली के जोगीरा9
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जोगीरा8

जोगीरा8

बुंद पानी भरे प्यार की गहराई को नही समझने वाले पती के प्रती यह व्यंग है। अपनी संतुष्टी को ही आधार मानकर आगे निकलने वाले पती के मनोभाव को दर्शाता यह जोगीरा व्यवहार मे वदलाव को कहता है। पती के कर्तव्य को मर्ग दर्शित करने पर कभी - कभी उसे गलत मन लिया जाता है। जिसके कारण नारी मन मशोर कर रह जाती है। उसका जीवन तनाव पुर्ण कट जाता है। कहा भी गया है की नारी को समझना कठीन है। यह जोगीरा पती को सावधान करते हुए कहा गया है कि आप अपने जीवन साथी के संतुष्ट रखने का…
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जोगीरा7

जोगीरा7

लम्बे मेरे बाल तन की व्यथा मन के उपर राज करने लगती है। इसको जवानी की अल्हरपर कहा जाता है। खोये - खोये से रहना। अपने बिचार को सही रखीये। अपने मन की भाव को शेयर करना चाहिए जिससे की सामने वाले को अपके प्रती व्यवहार उनका सही रहे। स्टाईल मे चुर नायिका को अपने आगे के वारे म ख्याल नही रहता है। इसलिए यह दुर्धटना घटती है। इस जोगीरा के जरीये यह कहा जाता है कि अनावश्यक रुप से मन को व्यथित करना सही नही है। अपने बिचार को सही तरह से रखकर जीवन को बिकाशोन्मुखी रखना चाहिए। नोटः-…
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जोगीरा6

जोगीरा6

व्लाज पे मेरा दिल बिचार प्रधान इस उक्ती मे संस्कार की बात कही गई है। अपके बिचार के अनुरुप ही आपका पहनावा होता है। इसलिए आपके बिचार का सही होना जरुरी है। इस जोगीरा मे जिस बात को कहा गया है। उससे नायिका के उच्चश्रंख होने का गुण जाहीर होता है। जिसका समाधान निकलने के बाद वह सतर्क हो जाती है। इस जोगीरा से कहा जाता है कि आप अपना बिचार के साथ व्यहार का भी माप सही रखीये जिससे कि जिवन मे आन्नद का प्रवाह बढ़ जाये। नोटः- आप इस लिंक को अपनो तक जरुर प्रेषित करे जिससे की…
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जोगीरा5

जोगीरा5

यदि कही किसी बात पर चर्चा चल रहा हो तो यह अनुमान लगा लेना की हमारी ही चर्चा हो रही होगी। यह अपसी तनाव को पैदा करता है। इस तनाव के कारण हमारा समान्य व्यवहार भी प्रभावित होता है। जिससे की आपसी सामान्यजस्य बिगरने लगता है। इससे पैदा होने वाला तनाव के कारण गुस्सा का बना माहौल को होली के जरीये जोगीरा के रुप मे प्रकट करके कहा जाता है। जोगीरा मे यह उक्ती इस तरह के व्यक्ति को सावधान करता है। यह व्यंग के वाण हमारी अंतः करण को छु जाता है। आनेवाली समय के लोग अपने सहज तथा…
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जोगीरा4

जोगीरा4

अल्हरपन के कारण व्यवहार मे बदलाव देखने को मिलता है। इस तरह के बदलाव परिवारीक रुप से सही नही माना जाता है। इसलिए अपने जिवन साथी के मनोभाव को दुरुस्त करने के लिए ही इस तरह के जोगीरा को कहा गया है। प्यार करने की तीखी नजर अपने पर रहता है। कहा जाता है कि प्यार जितना गहरा होगा प्यार पर उतना ही पहरा होगा। चाहत बढ़ने के साथ ही शरीर के संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। इसका नियंत्रण भी जरुरी है। जोगीरा के द्वारा समाज मे ऐसे बिचार रखने वालो पर सिधा व्यंग किया गया है कि इस तरह…
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जोगीरा3

जोगीरा3

मुड़ - मुड़ कर देखने की क्रिया मुलतः भाव प्रधान कार्य को निरुपित करता है। जब व्यक्ति अपने भाव के अनुरुप व्यक्ति को अपने करीव पाता है तो वह उसको जानने की कोशिश करता है। इसी को लेकर वह बार - बार देखता है। जब वह पुरी तरह से आश्वस्त हो जाता है तब ही अगले कदम के बारे मे सोचता है। कभी पति ही अपनी पत्नी की परीक्षा लेने को उत्सुक हो जाता है। प्यार मे यदि शक का भाव दिखने लगे तो इसका निराकरण होना जरुरी है नही तो यह भाव उसे अंदर ही अंदर खोखला कर देगा।…
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