मन क्यो धबड़ाये
मन बड़ा ही चंचल है, यह हमारे शरीर मे होने वाले आंशिक हलचल को भी परिलक्षित कर देता है। यह कुछ क्षण ही स्थिर रह सकता है, इसके बाद इसका बदलना हो सकता है। मन मे घबड़ाहट कई कारणो से होता है, लेकिन मुल आधार होता है, शरीर के नष्ट होने का भय यह एक ऐसा कारक है, जिसके हावी होते ही मन मे धबड़ाहट का दौर चलना शुरु हो जाता है। समय के साथ ही इसकी तिव्रता बढ़ती ही जाती है।
मन की धबड़ाहट को शांत करने के लिए हमे बाहर की घटनाओं का बर्णन देखना होता है। हमे अपने सिद्धान्त को भी देखना होता है, जिसके कारण यह उद्वीपन हमारे परेशानी का कारण बना है। इसका अर्थ है कि हमने इसके संभावित होने वाले परिणामो की कल्पना नही की। मानव के सुख पाने के स्वभाव के तहत ऐसा होता है। लेकिन जो इसके आदी हो चुके है, वह अपना विकल्प चुन कर आगे बढ़ते है, जिससे की उनको धबड़ाहट का सामना नही करना परे।
इस भजन मे मन के सुख पाने के साधन का वर्णन है तथा उदेश्य के प्राप्ती की परम लक्ष्य को ध्यान दिलाया गया है। जिससे की मन को धबड़ाहट नही होने की प्ररणा मिले। ऐसा होने से कार्य संपादन की गती बढ़ जाती है। मन को शक्ति मिलने लगती है। यानी हमारा शरीर के कार्य प्रणाली सही तरह से कार्य करता है। मन की स्थिरता ही हमारे कार्य कुशलता का पैमाणा होता है। इसलिए इस भजन मे मन को स्थिर रहने की कला का वर्णन किया गया है।
जब भी व्यक्ति अपना दिशा तय करे तो जीवन के आर पार देख सके जिससे की उसको पछतावा का समाना नही करना परे। इस भजन मे आत्मा की यात्रा के बारे मे कहा गया है। शरीर की यात्रा के समाप्त हो जाने के बाद आत्म की यात्रा शुरु होता है। इसकी अनंत यात्रा के पड़ाव को तय करना आसान काम नही है। यदि आत्मा का राही आपना यह उद्श्य जान ले तो उसके मन से डर भय समाप्त हो जाये।
आत्मा का मनोयोग हमारे चिंतन की अथाह गहराई से आता है। जिसमे एक जीव की यात्रा को परोक्ष तथा प्रत्यक्ष दोने नजरीये से देखा जाता है। इससे ही हमारे आत्मा की उर्जावान बनने की प्रक्रिया का जानकारी होता है। हमे ही यह निर्धारित करना होता है कि हमारे यात्रा का स्वरुप कैसा हो। इसके स्वरुप के निर्धारण मे जो कार्यवल लगता है और उसका जो उपार्जन होता है दोनो का सम्बन्ध कडी मेहनत से जुडा होता है। यही मेहनत हमे जीवन को उलझाता भी है। इस उलझाव से बाहर आने मे शारीरिक यात्रा के मध्येनजर आत्मिक यात्रा का भाव सही माना गया है।
भजन को शारीरिक पराकाष्ठा के साथ-साथ अंत समय मे होने वाले कार्य योजना का वर्णन किया गया है। जिससे की हमारा समस्त क्याण हो। भजन को भाव पुर्ण मुद्रा मे गायन तथा बादन के बाद उसको समझकर अमल मे लाना से हमारे जीवन को उत्कर्ष बनाने मे मदद मिलेगा।
हे मानव यह मानव जीवन बड़ा ही अनमोल है। इसमे हम शक्ति अर्जित करते है, जो हमारी आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। क्योकी शक्ति को अर्जित करने के लिए साधन की जुरुरत होती है और वह साधन हमारा शरीर है। इसलिए इस शरीर को साधन मानकर शक्ति की अर्जन करने मे लग जाना चाहिए। जो ज्ञान हमे चाहिए वह हमे समय – समय पर मिलने लगेगा। आपका जीवन यात्रा सफल हो इसके लिए हमारा प्रयास लगातार चलता रहेगा। आपका जय हो।
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