
समझ की शक्ति ही समाधान की दिशा तय करती है। इस गुण के धनी लोग समय के साथ आगे बढ़ते हुए खुश दिखाई देते है। समझने की शक्ति की पराकाष्ठा के लिए, अपनी ज्ञानेद्रियां की सक्रियता के साथ ही हमें वर्तमान और भविष्य के हमारे अनुभव से सिखे हुए कुछ विशेष गुण का समावेश के साथ निर्णय लेने होते है। एक अच्छी समझ ही हमें एक संतुष्टीकारक समाधान दे सकता है।
कभी-कभी हमारी अपनी समझ पर हमें पुरा भरोसा होता है लेकिन समय के हिसाव से उस समझ के अनुरुप सफलता नही मिलती है। फिर हमें अपनी समझ को फिर से समझने की जरुरत होती है। यदी हम फिर भी अपने लक्ष्य को पुरा करने मे समर्थ नही होते है, तो हमारी समझ से हमें और आगे जाकर समझना होता है। यदि कहीं से कोई ज्ञान हमारी समझ को उच्चता प्रदान कर देती है तो हम वहां से आगे निकल जाते है ओर यह हमारी अनुभव का हिस्सा बनकर जीवन को आगे बढ़ने मे मदद करती है।
एक अच्छी समझ के लिए एक अच्छे विचार की जरुरत होती है जो व्यक्ति की अपनी बैचारीक सम्पत्ती होती है। इसके सहारे ही वह जीवन मे उँचाई को हांसिल करता हुआ आगे निकल जाता है, और दुसरो के लिए एक मार्गदर्शक बनकर प्रेरणा के श्रोत बने रहते है। व्यक्ति को समझने के लिए हर छोटी से छोटी घटना पर उसके बिचार को परखना होता है, जिससे कार्य के समाधान करने की कला और ताकत की समझ को उच्चता प्रदान करते है। कभी-कभी हमे कुछ काल्पनिक विचार को बनाकर भी हमें अपनी समझ बनानी होती है।
घटना क्रम इतनी तेजी से बदलता है कि कुछ लोग समय और चाहत की धारा मे भाव को सही रुप से समझ नही पाते है और उलझ जाते है यही से हमे स्वयं को समझने की जरुरत होती है। तभी हम कहते है कि समझ का फेर है।
प्रसंगः 1 – मैं एक व्यक्ति को समझने की कोशीश कर रहा था मेरी इच्छा थी की उस व्यक्ति के मन मे जो हमारे प्रती भावना है उसमे उच्चता आये और हमारे संबंध और प्रगाढ़ हो पर हमारे द्वारा किये गये प्रयास ना काफी सावित हुए क्योकि उस व्यक्ति की वर्तमान परिस्थिती उसके बैचारिक व्यवस्था के अनुरुप नही थी। अंततः मुझे मेरे बड़े बुजुर्ग से शिक्षा मिली की व्यक्ति को अपनी नियत ओर निष्ठा से कार्य करते हुए जीवन मे आगे बढ़ने चाहिए। यही ओ पहलु है जो लोगो को जुराव और विलगाव के मानडंड को स्थापित करता है।
इस व्यवस्था मे हमे खुद को समझते हुए आगे निकलने की प्रधानता को प्राथमिकता देते हुए आगे निकलना होता है। जबकी दुसरे के प्रती शिथिलता बरतनी होती है। यही से विलगाव भी बढ़ने लगता है। कहां जाता है मनुष्य को स्वार्थ ही उसके किसी के करीव और नजदीक लाता है।
प्रसंगः 2 – एक व्यक्ति अपने कार्य क्षमता को जानते हुए अपने मार्ग पर चलते हुए परोपकारी भाव के साथ जुरकर दुसरो को लाभ पहुँचाने के कार्य की धनी थे। लेकिन लाभ लेने वाला व्यक्ति संकिर्ण सोच के कारण उसको कई बार परेशानी का सामना करना परा। अंततः वो यही कहा की हमको जो करना है उसके लिए हमें सही समय की तलाश है जिसके लिए हम प्रयासरत है। उसकी यही समझ उस व्यक्ति को एक गहरे बैचारिक दोस्त के रुप मे स्थापित कर सकता है।
प्रसंगः 3 – किसी व्यक्ति को समझते हुए उसके गुण और अवगुण के समय के अनुरुप उसका उपयोग करते हुए खुद आगे निकल जाना तथा फिछे मुड़कर नही देखने की प्रवृति उसके एकाकी बना देता है। जवकि वह खुद को एक समझदार व्यक्ति के रुप मे व्यवहार भी करता है, जो आगे चलकर उसको एक सुखद समाजिक व्यवहारीक व्यक्ति बनने मे बाधा का कारण बनता है।
प्रसंगः 4 – गुणकारी प्रभावकारी कार्य उर्जा के धनी लोग एक संस्थागत व्यवस्था के साथ आगे बढ़ते हुए खुद को उर्जावान बनाये रखते है। उनकी ख्याती भी खुब बनती है तथा वो समय के साथ खुद की समझ को बेहतर भी बनाने के प्रति सजग रहते है। इस तरह के लोग सफल माने जाते है और उनके बार मे कहा जाता है कि ये व्यक्ति कल्याणकारी व्यवहार के धनी है। लोगे के बीच उनकी खुब प्रशंसा होती है। समय के साथ इनकी प्रसंगिता की जो भी परिणाम हो लेकिन समझ के फेर से बाहर निकलते हए जो आगे निकल जाते है वही वास्तविक जीवन को समझ पाते है।
जीवन के सात्वीकता को समझते हुए जो दुनिया को समझने निकलने है वे लोग समाज के लिए प्रेरण स्त्रोत बन कर याद किये जाते है। हमे भी हर संभव कोशीश करनी चाहिए की हम स्वयं को गुणकारी बनाकर एक दुसरे को आगे बढ़ाते हुए खुद को उर्जावान बनाये रखे तथा लोगे के प्रेरणा श्रोत बने रहे इससे जो सात्विक आनंद हमे प्राप्त होगा वह हमे एक लंबे समय तक उत्साहित बनाता रहेगा।
समझ के फेर मे स्वार्थ और परमार्थ के बिच खुद को एक उर्जावान व्यक्ति के रुप मे स्थापित करने की कठीन जिम्मेदारी होती है जो इस गुण के धनी है उसके सम्मान मे लोग कहते नही थकते है। उनकी उच्चता ही उनका सबसे बड़ा पारितोषिक होता है।
लेखक एवं प्रेषकः अमर नाथ साहु
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